लोकबन्धु राजनारायण
संस्थापक
इस महाविद्यालय के संस्थापक लोकबंधु राजनारायण थे। वे असाधारण चिंतक और साहसी जननेता थे। समतामूलक लोकतांत्रिक न्याय पर आधारित समाज के निर्माण में चेतना के निर्माण को महत्वपूर्ण मानते थे। दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों , महिलाओं के साथ साथ हर उस व्यक्ति के साथ खड़े हो जाते थे जिसका शोषण होता था। राष्ट्रीय राजनीति में सशक्त प्रधानमंत्री को परास्त कर उन्होंने नरेंद्र प्रतिमान स्थापित किए ।
जब वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र थे तब भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ और आजादी के बाद उन सरकारों के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर देते थे जो शोषण और दमन करता था।
इसीलिए जितनी बार परतंत्र भारत में अंग्रेजों का विरोध करते हुए उन्हें जेल हुई उससे अधिक स्वतंत्रत भारत में उन्हें जेल भेजा गया।उनहत्तर वर्ष के जीवन में गरीबों , दलितों, पिछड़ों की लड़ाई लड़ते हुए सत्तरह वर्ष जेल में गुजारने पड़े। वे अस्सी बार जेल भेजे गए।
वे अपनी पीढ़ी के सभी राजनीतिज्ञों में एकदम अलग थे।
लोकबंधु राजनारायण समाज से गैरबराबरी को खत्म करना चाहते थे। समाज के हर व्यक्ति को शक्तिमान बनाना उनका महान स्वप्न था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के जब वो तेजतर्रार छात्र नेता थे तब भी और बाद में भी उनकी बातें विद्यार्थियों को काफी आकर्षित करती थीं। वे हर जोर जुल्म के खिलाफ छात्रों के आंदोलन में अपने जीवन की सांध्यवेला तक आश्चर्य चकित कर देने वाली उर्जा के साथ सम्मिलित हो जाते थे। वे यह मानते थे कि सामाजिक विषमता, भेदभाव,दूर करने के लिए 'शिक्षा' ही सबसे आवश्यक तत्व है। शिक्षा ही यह एहसास दिलाती है कि व्यक्ति क्या है और उसे क्या करना चाहिए । वे ऐसे छात्रों और युवाओं को तैयार करना चाहते थे जो न जुल्म ज्यादती के भागीदार हों न सहन करें। वे ऐसे विद्यार्थी बनाने की इच्छा रखते थे जो देशकाल , परिस्थितियों का सही मूल्यांकन कर सके और तदनुसार जीवन जी सकें।
वे पिछड़ों दलितों महिलाओं गरीबों की समानता के लिए आंदोलन करते ही थे , शिक्षा में समानता का सवाल उनके मस्तिष्क में कौंध रहा था। डॉ राममनोहर लोहिया के शिक्षा संबंधी नारे - ' राष्ट्रपति की हो या चपरासी की संतान, सबको शिक्षा एक समान । '
के वे पक्षधर थे । इसलिए उन्होंने पिछड़ों, दलितों , अल्पसंख्यकों, महिलाओं एवं गरीबों की पढ़ाई लिखाई के लिए अपने गुरु डा राम मनोहर लोहिया के नाम पर इस महाविद्यालय की स्थापना की। अति पिछड़े क्षेत्र की छात्राओं के लिए दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करना दुष्कर था। स्त्रियों की उच्च शिक्षा और प्रगति की झलक शहरों तक ही सीमित थी। वे यह मानते थे कि उच्च शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति में वह चिंतन धारा पैदा करना है जिससे वह अपने जीवन को सफल बनाने के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित कर सके। उसकी गरीबी अज्ञानता दूर हो सके।
लोकबंधु राजनारायण इसके लिए आजीवन निर्भीक रहकर तत्पर रहे। वे धर्मनिष्ठ थे इसके बावजूद पाखंडों के विरोधी सत्याचरण के प्रबल पोषक राष्ट्रीय नेता थे।