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(श्री राधे मोहन सिंह )
संरक्षक

( पुत्र - लोकबंधु राजनारायण )

मनुष्य एक सामाजिक और सांस्कृतिक प्राणी है। प्रत्येक पीढ़ी अगली पीढ़ी को जीवन के मूल्य और ज्ञान सौंपती है।

बहुत से संस्कार परिवार से मिलते हैं ।बहुत सी शिक्षा और संस्कार स्कूलों ,कालेजों ,विश्वविद्यालयों से मिलते हैं। इससे व्यक्ति आत्म केन्द्रित नहीं होता, मूल्यों से नहीं कटता, घर, परिवार ,समाज राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझता है।

शिक्षा से व्यक्ति नैतिक बनता है, अपने आचरण पर ध्यान देता है, उसका आत्मविकास होता है। वह दूसरों को आदर देता है और स्वयं समाज में सम्मान प्राप्त करता है।

गांधी जी कहते थे कि " शिक्षा से तात्पर्य मैं बच्चे या मनुष्य में आत्मा,शरीर और बुद्धि के सर्वांगीण और सबसे अच्छे विकास से मैं समझता हूं।"

महाविद्यालय विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में योगदान देता रहा है।

मेरा ऐसा मानना है कि
शिक्षा से व्यक्ति में ज्ञान चक्षु खुलते हैं । ज्ञान रूपी शक्ति जड़ता से उबारती है। मनुष्य में हित - अहित सोचने के मानवीय गुण विकसित करती है।

ज्ञान के अभाव में किसी भी राष्ट्र की उन्नति नहीं हो सकती।

महाविद्यालय परिवार के सभी सदस्यों विद्यार्थियों, शिक्षकों , प्राचार्य ,कर्मचारियों को इस पवित्र अभियान के लिए बहुत- बहुत आशीर्वाद !